एक नूर आदमी

             
                 एक नूर आदमी
                                 - ना.रा.खराद
  "आदमी की पहचान उसके कपड़ों से होती है।" किसी विचारक की तरह यह उद्धरण मेरी जेहन में आया, मेरे अन्य उद्धरणों की तरह इसके पक्ष में और विपक्ष में प्रतिक्रियाओं का दौर शुरू हो जाएगा,मगर किसी महान विचारक की तरह उसपर एक नया उद्धरण लिखकर पल्ला झाड़ दूंगा।
कितने लुच्चे और लफंगे शानदार कपड़ों से अपना चरित्र छिपा लेते हैं, अपने शारीरिक ऐब या व्यंग्य कपड़ों में छिप जातें हैं। स्त्रियों के सौंदर्य में कपड़ों का योगदान है।
   कपड़ों की जरूरत अकेले इन्सान को क्यों पड़ी, इसके तह में मैं नहीं जाना चाहता, मैं तो कपड़ों की अहमियत पर रोशनी डालना चाहता हूं। कपड़ा इन्सान की पैदायशी जरुरत बनीं है, जन्म के साथ कच्छा पहना दिया जाता है। मृत्यु हो जाने पर भी कफ़न नामक कपड़ा पार्थिव शरीर पर डाला जाता है।
  कपड़ों से सजी दुकानें देखकर इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि कपड़े कितने अहम है।एक इन्सान जब दूसरे इन्सान को देखता है,तो कपड़ों में देखता है।
  कपड़े दिखाई देते हैं। कपड़ों से अनुमान लगाते हैं कि किस खेत की मूली है। पहलवानों को लंगोटी पहना दी जाती है। वहीं उनकी शान!
  दुल्हा दुल्हन के वस्त्र तो बड़े शानदार होते हैं। घुंघट भी कपड़ा है। चुनरी हो या रुमाल वस्त्र है । किसी त्यौहार मौके पर हर आदमी नए वस्त्रों में खुद ढंकता है। किसी महफ़िल में शिरकत करनी हो,तो इन्सान सबसे ज्यादा ध्यान कपड़ों पर देता है। किसी को देखने पर सबसे पहले उसका लिबास यानी कपड़ा दिखाई देता है।
कपड़ों के कुछ रंग और ढंग पेशेवर हो गए हैं। जिस्म पर पुलिस की खाकी वर्दी हो तो पहचान बताने की जरूरत नहीं है। कुछ बैंड-बाजे वाले लिबास से पहचान बनाते हैं।
धनवान लोग अपनी अमीरी कपड़ों में दिखाते हैं, बिना कपड़ों में कैसे अमीर लगते?
  कपड़ों के नाम भले अलग-अलग हो मगर है तो कपड़ा ही। जैसे नदी का नाम अलग होने से पानी नहीं बदलता।
स्त्रियों में तो कपड़ों का खासा आकर्षण है, साड़ी पसंद करने में घंटों बिताना यूं ही नहीं है।गंदे शरीर को अच्छे कपड़ों से ढंक सकते हैं। द्रौपदी का वस्त्रहरण हम भूलें नहीं है,प्रत्यक्ष भगवान ने लाज बचाई।
फटे कपड़ो से आदमी की इज्जत जाती है, उसे गरीब या भिखारी समझा जाता है।
शानदार प्रदर्शन करने के लिए सबसे अहम कपड़े है ,इसलिए तो शादी ब्याह में दुल्हन को कपड़ों में सजाया जाता है। मंड़प भी कपड़ा है। बारातियों को टोपी रुमाल अर्पित किया जाता है। स्त्रियों को साड़ियां। कहीं अतिथि बनकर गए तो स्त्रियों को साड़ी और चोली भेंट की जाती है।
  कोई स्त्री घर पर मेहमान बनकर आएं तो उसे साड़ी पहनाकर विदा किया जाता है, उसके बच्चों के कपड़े खरीदे जाते हैं।
कपड़ा पूराना होने पर भी बेकार नहीं जाता, बल्कि दोगूने ताकत से फिर इस्तेमाल किया जाता है। आवश्यकता के अनुसार फाड़कर या जोड़कर उसे उपयोग में लाया जाता है।
बाजार भी कपड़ों की दुकानों से सजा रहता है। कपड़ा आदमी की रोटी मकान से भी बड़ी जरूरत है, क्योंकि आदमी खाली पेट रह सकता है, मगर खुला पेट नहीं रह सकता। मकान तो आदमी को ढंकता है, मगर कपड़ा आदमीयत को!
दुनिया के तमाम राष्ट्रों के ध्वज कपड़ों से बने हैं। लहराने का गुण कपड़ों में है।
इन्सान की मृत्यु साथ जानेवाली चीज कपड़ा है।
कपड़ों के इतने उपयोग हैं इसलिए सभी ध्वज उससे बनें है।
झंड़ा ऊंचा रहे हमारा!
        
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