- ना.रा.खराद
हरकोई अपने पेट के लिए कुछ व्यवसाय करता है, कुछ बेचकर दो पैसे कमाता है और अपना गुजारा करता है। इसपर किसी को एतराज होने का सवाल ही नहीं उठता । चीज़ों की जरूरत ग्राहक को होती है इसलिए वे खरीद लेते हैं मगर जब उसे जरुरत न होने पर भी जबरदस्ती करना, बहकाना, समझाना, पटाना, फंसाना,जिद करना, झांसा देना, पीछा करना इतना सब करके अपना उल्लू सीधा करना व्यवसाय नहीं, शुद्ध धोखाधड़ी है। ऐसा नहीं है कि यह जबरदस्ती मात्र वस्तुओं के बारे में है बल्कि हर क्षेत्र में इसका अमल
दिखाई देता है। अपने स्वार्थ के लिए दूसरों की बलि चढ़ाना,यह कारोबार अब जोरों पर है, बड़े धड़ल्ले से जारी है, बेझिझक अपनाया जा रहा है।
कहावतों में 'दही लो दही 'का जिक्र है, मगर असल जिंदगी में सब तरफ यही माजरा है। कोई ऐसी चीज नहीं जो, बिना चिल्लाएं बिक रही है, बाजार का शोर इस बात गवाह है। किसी मंदिर जाओगे तो हजार बिक्रेता आपके कान खा जाएंगे। ख़ाके देखो,छुकर देखो,हात लगाकर देखो,लो मत देखो तो सही ऐसी न
जाने कितनी बातें वह करेगा। हजारों लोगों के झूठलाने पर भी वे शर्मिंदा नहीं होते लेकिन यह नई समझते कि जब उसे वे सब नहीं चाहिए तो वह क्यों खरीदें! किसी भिखारी की तरह पीछे पड़ना कौनसा व्यवसाय है?
सड़क से चलों तो टैक्सीवाले,बसेसवाले उसकी टैक्सी जहां जा रही है, वहां चलने का आग्रह करते हैं।जो
कहीं से आ रहा है, उसे कहीं ले जाने की बात करते हैं। सड़क के किनारे बैठे भविष्यवेत्ता जबरदस्ती रुकवाते है और भविष्य बताना चाहते हैं। जड़ी बूटियों वालें तो एक रेकार्ड्स लगा देते हैं, कोई सुने या ना सुने, कोई रुके ना रुके,इनका कैसेट बिना रुके बजता रहता है।अब तो मंदिरों के सामने रास्ता रोककर
अपनी चीजें खरीदने पर अड़े रहते हैं,समझ में नहीं आता कि यह सब क्या हो रहा है।
बात केवल चीज़ों तक सीमित होती तो कुछ और बात होती मगर हर बात में यही बात दिखाई दे रही है,
'दही लो दही ' वाली बात। अगरबत्ती से लेकर बड़े फ्लैट तक चीज़ों की बिक्री ऐसी ही हो रही है।मूल बिक्रेता से बढ़कर दलाल इस काम में अग्रसर रहते हैं। मार्केटींग भी एक तरह का झांसा है।बीमा एजेंट तो हर
जीवित आदमी के पीछे मरते दम तक पड़ता है।हर आदमी को उसकी मृत्यु का एहसास दिलानेवाला यमदूत!
किसी सार्वजनिक स्थान पर बैठो तो सैकड़ों बिक्रेता आपको परेशान करेंगे। नहीं कहो,तो भी जिद करेंगे।
खुबियां गिनाएंगे,या सस्ती दरों का दावा करेंगे। जरुरी न होने पर भी गन्ने का रस पिलाना चाहते हैं। अखबार बेचनेवाले तो आज की ताज़ा खबर सुबह से कहते हैं। कितने कागज़ हाथ में थमाएं जातें हैं। बड़ी-बड़ी दुकानों, ढाबों पर आने जानेवाले लोगों को ग्राहक बनाना चाहते हैं।किराए से कमरा लेना हो या भोजन करना हो, पर्यटन स्थलों पर बिक्रेता या दलालों का सैलाब रहता है। जैसे जरूरत सिर्फ व्यवसाय वालों
को है, ग्राहक को नहीं अथवा उसे अक्ल या समझ नहीं।
ग्राहक को हक है कि चीजें ले या नहीं,किससे ले किससे नहीं, मगर उसका यह बूनियादी हक जैसे छिना जा रहा है, बिक्रेता की गर्दिश में जैसे ग्राहकों का तारा खो गया है।