यह कैसी आस्तिकता?
मुझे जाननेवाले मुझे नास्तिक कहते हैं, क्यों न कहें ,मेरा व्यवहार उन्हें आस्तिकता के विपरित दिखाई देता हैं।अगर मुझे वे नास्तिक न कहें तो उनकी आस्तिकता पर सवाल खड़े होंगे, इसलिए मुझे नास्तिक कहकर वे पल्ला झाड़ लेते हैं।
आस्तिकता के जो मापदंड उन्होंने तय किए हैं,वे
उसपर संदेह नहीं चाहते,न कभी वे अपने गिरेबान में झांकना चाहते हैं। ईश्वर की जिस संकल्पना में वे जीते हैं,वे मेरे लिए दकियानूस,बेबूनियाद और भद्दी है।मेरी नास्तिकता का ढिंढोरा पीटने वाले मेरे किसी भी सवाल
का जवाब नहीं देते, क्योंकि इस तरह के आस्तिकों की तादाद बेशुमार हैं और वही ताकत बनी हुई है। धार्मिकता
जब संगठन बन जाती है तो वह धर्म नहीं अधर्म हो जाता
है।
हर गली-मोहल्ले में मंदिर बनें हैं, घर-घर में मंदिर हैं। आखिर ईश्वर को ऐसे सिमित क्यों किया जा रहा है। ब्रम्हांड के स्वामी को क्यों कैद किया जा रहा है? जो हम
सबकी प्राणवायु है। आस्तिकता अज्ञान का प्रतिरूप बनी
है, मूर्खता की सीमा तक पहुंच गई है। धार्मिकताधर्मांधता बन चुकी हैं, जहां से प्रार्थना के स्वर निकलने चाहिए , वहीं से तलवारें निकलती हैं।साधु संतों ने,र्ऋषी मुनियों ने
जो लिखा और कहा , अनुयायि उससे भटक गए हैं और केवल धार्मिकता का चोला पहने हुए हैं।
समूचा संसार इस धार्मिक दोगलेपन से आहत हैं,जो कोई इसका विरोध करता है, उसे पाखंडी या काफ़िर करार दिया जाता है। अपनी मूर्खता को आस्था का नाम देकर अपनी रोटीयां सेंकना शातिराना खेल खेला जा रहा है।
धार्मिक पाखंडों ने चारों तरफ उत्पात मचाया है।
धार्मिकता के भेष में भेड़िए घुम रहे हैं।अपने अज्ञान से
पर्दा हटाते देख ,वे विचलित हो जाते हैं।
धर्म का यह ज्वर या उन्माद सभी धर्मों में दिखाई देता हैं,
जैसे सबमें होड़ लगी है। धर्म की आड़ में अपने मनसूबे को मुकाम तक पहुंचाने की भरसक कोशिश हो रही है।
मानवता को कुचलकर अमानवीयता का व्यवहार हो रहा है।धर्म किसी दूसरे धर्म को कुचल रहा है,हिंसा का रास्ता अपना रहा है, जबरन धर्मांतरण किया जा रहा है।
धर्म के ठेकेदार उसे बढ़ावा दे रहे हैं, धर्म रक्षक के नाम पर अपनी अधर्म दुकान चला रहा है।
प्रकृति में, पशु पक्षियों में ,हर इंसान में उन्हें ईश्वररुप दिखाई नहीं देता , उसीकी रचना को तहस-नहस करना
कैसी आस्तिकता? पुजा करनी हो तो प्रकृति कीजिए।
जिस वायु से जीवित हो,जो फल खाकर जी रहे हो उसकी पुजा करों।जिस मिट्टी से हमें सब मिलता है उसकी पुजा करों।जो सूर्य रोशनी देता है,उसकी पुजा करों। आस्था प्रकृति से हो। धार्मिकता केवल कर्मकांड नाम नहीं है। कुछ करना धार्मिकता नहीं, कुछ होना धार्मिकता हैं।कभी चिंतन मनन भी हो। सिखाया धर्म
कभी चेतना जागृत नहीं करता।झूठी आस्तिकता ही सच्ची आस्तिकता के रास्ते की रुकावट है।