मतलबी है लोग !

          मतलबी है लोग !
                          - ना.रा.खराद
इन्सान की अगर कोई सच्ची पहचान है तो यहीं है कि वह मतलबी है, खुदगर्ज है। वैसे खुदगर्ज होना, कोई ग़लत बात नहीं है, क्योंकि अपनी जरुरतें पूरी करने का हक हर किसी को है, अगर हरकोई मतलबी या खुदगर्ज है,तो कौन किसे ताना मारें या उलाहना करें?
  किसी और के मतलबी होने का पता तो हरेक को है,या हर किसी ने यह कबूला है कि सब मतलबी है ,मगर अपनी गिरेबान में में झांक कर कोई नहीं देखता।
 इन्सान का खुदगर्ज होना, कोई आश्चर्य की बात नहीं मगर जब वह अपने स्वार्थ के लिए औरों के स्वार्थ में बांधा डालता हो, अपने मतलब के लिए दूसरों को नुक़सान पहूंचाता हो,तब उस मतलब का मतलब कुछ और होता है। अपना मतलब साधते हुए, औरों का मतलब सफल न होने देना, उससे वह छिनना पशुता है।
रिश्तों में, मित्रों में दरार पड़ने की , विवाद की वजह यह मतलब होता है।मतलब के लिए रिश्ते बनाना या बिगाड़ना एक खेल हो चुका है, जिससे कोई फायदा नहीं है,वह अकेला पड़ जाता है, जिससे फायदा हो,वहां भीड़ लग जाती है।
 मतलब के बिना कोई किसी के साथ न रह रहा है,न रुक रहा है,न चल रहा है,न बोल रहा है।यह कैसा समय या जमाना आया है कि बेमतलब कोई बोल तक नहीं रहा है। 
 रिश्तें भी मतलब के धागे से बंधें है, मतलब समाप्त, रिश्ता समाप्त। कोई त्याग नहीं कर रहा है, जड़ में कोई काम नहीं कर रहा है। यहां कोई मंदिर, मस्जिद या चर्च में जा रहा,तो मतलब से।गरीब को लगता है, भगवान देगा, अमीर को लगता है, भगवान उसके धन की रक्षा करेगा।
 दोस्ती-यारी,रिश्तेदारी या राजनीतिक कार्य बिना मतलब के नहीं है। कोई नारे लगा रहा है,तो यूं ही नहीं। यहां हरकाम
मतलब के लिए किया जा रहा है, इससे क्या फायदा,यह पहला सवाल। फायदा नहीं तो कोई कुछ करने को तैयार नहीं।
  कोई आदर कर रहा है, दरअसल वह आदर नहीं है,मतलब का आदर है। कोई प्रशंसा कर रहा है,तो बिना मतलब के नहीं,माला चढा रहा है,पैर छुए रहा है, इसके पीछे मतलब होता है।जब दोनों का मतलब पूरा हो तो यह धंधा धड़ल्ले से चलता है।
   लोग तो खुद के मतलब के लिए अपने मतलब की बात करते हैं, क्योंकि वह जानता है कि उसकी तरह सब मतलबी है।
  मतलब भी छिपाने की चीज है,' आटा दिखाना और कांटा छिपाने ' वाली कहावत चरितार्थ होती है। मतलबी के मनसूबे ऐन वक्त पर मालूम होते हैं।
 मतलबी का ढोंगी होना आवश्यक होता है, मतलबी अवसरवादी होती है, दूसरों के मुंह से निवाला छीनने में माहिर होते हैं।
 कहीं कोई लारी पलट गई,तो लोग चीजें छीनकर भागते हैं, कोई मरा तो मरा। कहीं मुफ्त में कुछ मिल रहा है तो लोगों का हुजूम तो देखो, भगदड़ में मर जाएंगे मगर मतलबी बने रहेंगे। सब तरफ छीना-झपटी है, मुझे चाहिए का नारा बुलंद है, कोई किसी और को दो, नहीं कह रहा है।
   हर किसी से मतलब की बू आती है, कोई किसी पर भरोसा नहीं कर रहा है, सबको लगता है,दूसरा मतलबी है।सब मतलबी है, इसलिए होड़ और संघर्ष अटल है।
   एक चीज दो को चाहिए,तो संघर्ष होगा।सभी मतलबीयों से परेशान, सबको इन मतलबीयों ने परेशान कर रखा है। मतलबी मुफ्तखोर होती है, अपने इसी प्रवृत्ति के कारण पहचाने जाते हैं।
   मतलब कोई ग़लत बात नहीं है, मगर अपने मतलब के लिए औरों को परेशान करना, उन्हें ऐंठना या लूटना अमानवीय है।
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