- ना .रा.खराद
अखबार में रोजाना आत्महत्याओं की खबरें छपती है,पढ़कर प्रेरणा मिलती है। रोजमर्रा की जिंदगी से तंग आ जाते हैं ,तो आत्महत्या के विचार आते हैं।न रहेगा बांस,न बजेगी बांसुरी। आत्महत्या कोई खेल तो नहीं वर्ना कोई भी कर लेता। आत्महत्या पहले झटके में सफल हो तो ठीक ,वर्ना कानून आत्महत्या की कोशिश के जुर्म में फांसी पे लटका देता हैं। आत्म हत्या ,मतलब आत्मा की हत्या,मैंने तो गीता में पढ़ा ,आत्मा कभी मरती नहीं।शायद खुद को मिटा देने से वो भी मरती होगी।
मैं आत्महत्या के तरीके पर विचार करने लगा,सांप भी मरे और लाठी भी न टूटे ,ऐसा कोई तरीका ढूंढना था। मैंने अब तक की आत्महत्याओं पर गौर किया,मंथन किया, दुनिया की प्रसिद्ध आत्महत्याएं नामक किताब पढ़ी , कुछ तथ्य मेरे हाथ लगे।उसके आधार पर मैंने ,पंखे से लटककर जान दी जान देने की ठानी।चूंकि पंखे हवा के लिए होते हैं मगर वह प्रथम आत्महत्यायी कौन रहा होगा ,जिसने उसका उपयोग आत्महत्या लिए किया।
पंखा खुद लटका हुआ है,यह उस विचारक ने देखा होगा।पंखे से फर्श की दूरी पर सोचा होगा। एकबार लटककर देखा होगा। फिर लटका होगा ,मरा होगा , क्योंकि कोई भी खोज बिना बलिदान के नहीं होती ।तब से पंखे का नाजायज उपयोग शुरू हुआ होगा। चूंकि पंखे कमरे में रहते हैं , सुविधाजनक होते हैं। वहां आत्महत्या की सामग्री और वातावरण दोनों होते हैं।
मैंने दरवाजा खोला, पंखे को देखा। बरसों से लटक रहा था मगर अभी भी जीवित रहकर हमारी सेवा कर रहा था। गर्मी से हमें राहत पहुंचा रहा था। जिस तिपाई का मैं उपयोग करनेवाला था,उसी तिपाई पर चढ़कर मैंने कई कामों का अंजाम दिया था।उसका ऐसा अनुचित उपयोग ,मेरे गले नहीं उतर रहा था।
जिस रस्सी ने आजतक बचाने का काम किया,उसीसे जान देना रास नहीं आ रहा था।
आत्महत्या अगर बहुत सोचकर करनी चाहो, तो आदमी वो कभी न करें।आत्महत्या की जब सोचो तो जरा आत्महत्या पर भी सोचो।आत्महत्या कायरता है। जिंदगी से हारे लोग आत्महत्या करते हैं।मरकर नहीं,जीकर दिखाएं की आप कितने बहादुर हो।