मुलांच्या जीवनात बाबा म्हणजे आधारवड असतो.

प्रिय बाबा,
बहुत बार मन करता है आपको ख़त लिखने का
 पर शब्द मिलकर भी खो जाते हैं,
या ऐसा भी कि कुछ लोगों को हम समझ सकते है
 पर समझाने का अधिकार नहीं होता
आपने हमें हमेशा समझा भी और समझाया भी है
जब भी उदासियाँ आयी, आपने हमारे आँसू पोंछे
जब–जब आपको उदास देखा तब 
आप दुनिया के सबसे ताकतवर इंसान दिखे 
और जब भी आपको खुश देखा तब 
शायद ही आपके जितना उदास इंसान कोई देखा हो
 मैं दूर होकर भी आपको देख सकती हूँ,
आज आप दुःखी हो ,उदास नहीं क्योंकि आपकी 
उदासी हँसी के पीछे छिप जाया करती है और
 अफ़सोस उदासियों को रोने का अधिकार नहीं
रोने का हक़ सिर्फ़ दुखों को हैं,
आपको रोता हुआ देखना मुझे कमज़ोर बना सकता है पर 
रो दिया कीजिए,इससे आप कभी कमज़ोर नहीं बनोगे
रिश्ता कोई भी हो तकलीफ देता है क्योंकि
 वो एक सीमा में बंधा हुआ होता है
अगर सीमा न होती तो रिश्ते नहीं होते और 
सीमाएं हैं इसलिए सब उसे तोड़ना चाहते हैं
टूट भी जाए तो रिश्ते नहीं टूट सकते
आप ही तो कहते है न फूलों के रंग देखो,
आसमान की ऊंचाई देखो, 
बारिशों में भिगो, यहीं ईश्वर है 
बाक़ी जो भी कुछ है सब इंसानों का बनाया है,
 उसमें कभी जीवन नहीं हो सकता।और 
मैं ये कहती हूँ की जिसमें जीवन नहीं हो सकता 
उसमें जीते इंसानों के बारे में क्यों सोचना
आपकी ज़िंदगी आपकी है 
अपना आधे से ज्यादा जीवन आपने 
हमारे लिए जीया,क्या अब 
हमें हमारे हाल पर छोड़कर जी नहीं सकते
एक लंबी छुट्टी लेके पहाड़ों को पार करिए,
नदियों में नहाईये,जैसा बचपन में जीते थे
मैं नहीं चाहती कि जब आप बूढ़े हो तब
 पहाड़ों के पास तो हो पर उसे चढ़ न पाओ,
रही बच्चों की बात,
उनको अक्ल तब आती हैं 
जब उनपर जिम्मेदारियाँ आती हैं,
इसलिए उनको सुधारने की जिम्मेदारी 
वक्त पर छोड़ दीजिए
गलत और सही कोई नहीं होता,
शायद हालात होते हैं इसलिए 
ख़ुद के संस्कारों पर कभी संदेह मत करना
अगर वो गलत होते तो क्या मैं 
कभी आसमान के बदलते रंग देख पाती या
 जीवन समझ पाती,किताबों के पन्नें पलट पाती या 
लिख पाती! ...क्या भाई कम उम्र में खुद के पैरों पर खड़ा हो पता,
क्या वो अनजान शहर में रहने की हिम्मत करता!....
बहुत बातें हैं,बदलता वक्त है,बढ़ती उम्र है—सब की।
बाबुषा कोहली की एक लाइन है
 “एक छींक की तरह आ जायेगी मृत्यु, जेब में रुमाल नहीं होगा।" 
क्या हम मृत्यु को अंतिम सत्य मानकर जीवन से प्रेम नहीं कर सकते!

बहुत प्रेम!

आपकी बेटी,
सुजाता
२७ दिसंबर २०२२
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